Its a beautiful collection of poetries. Full of emotions, love sentiments with the flavour of nature. This poetic journey will lead you a refreshment of spa of the mind. कैसा धुआ धुआ है समा, अभी तो आँखों से उतारी थी रात , पुतलियों ने फिर पहन लिया धुआ.... वो कुछ आधा जला सूरज ढ़का है कहीं वो रात के उस पार का धुआ.... वो कोई बूढा साया बैठा है कोई की दरखतों ने ओढ़ रखा है धुआ.... एक गरम चाय की चुस्की और मुंह से निकले अल्फाजों का धुआ..... तलाश रही हूँ कुछ ल्फज गिरे थे शायद आँखों में ठहरी ओस बन गए...... चलो तनहाई चलते हैं ऊँचे टीले पर, गुनगुनी धूप मे बैठ के बतियाएंगे !! परछाई को भी ले चलते हैं , खूब जमेगी ! मुस्कान को बुला लेते हैं , वरना बुरा मान जायेगी ! खुशी बडी नखरीली हैं, उसको नहीं बतायेंगे !! मनमौजी ख्यालतों को ले चलते है, उनके पकवान बडे अच्छे हैँ !! वाह रे मंन तेरे कितने यार , सब फिर से शोर मचायेंगे !! गुनगुनी धूप मे सर्द हवा मे बैठ के बतियाएंगे!!
Youth
To inspire the generation to taste the pages of books with a cup of tea . And get some relief from today's fast lifestyle