बड़ी लम्बी है ये खामोशी की सड़क न जाने कहाँ मुड़ेगी.... धुली हुई है अशकों से, लब्जों से कब जुडेगी..... वक़्त भी दूर खड़ा, बूढी चांदनी सा चमकता है... चलो मनं दूर तलक..... कुछ कह लेना कुछ सुन लेना.... जहां अासमां ज़मीं को चखता है........ मनं की दास्तां मनं के पास..