प्यार का नाम जब अमन की ज़ुबान पर आया, तब वह ग्रेजुएशन के फ़ाइनल पेपरों की तैयारी कर रहा था। प्यार के सपने और वो भी अपनी असिस्टेंट प्रोफेसर मिस ज्योति गौतम से, बाक़ायदा मित्रों और कुछ प्रोफेसरों की उपस्थिति में, अमन प्यार के अनंत महासागर में गोते लगाने लगा था। मिस गौतम की उम्र रही होगी क़रीब अट्ठाईस वर्ष और अमन सिर्फ़ बीस वर्ष का। उड़ती-उड़ती ख़बर थी कि मिस गौतम अनमैरिड हैं। तो बस, फिर क्या था, जो हिन्दी साहित्य के बोरिंग लैक्चर अमन को काटते थे, उन लैक्चर्स में उसकी हाज़िरी पूरी सो प्रतिशत हो गयी। वैसे कॉलेज में मिस गौतम के दाख़िल होते ही उन्हें देखकर अमन के मन में “मोहब्बतें” फ़िल्म की तरह बैकग्राउंड में पत्ते उड़ने लगते और संगीत बजने लगता था। अमन, मिस गौतम के सामने आता, मुसकुराता, उनका इस्तकबाल करता और चला जाता। मिस गौतम कई बार उसकी इन मुस्कुराहटों का जवाब सिर्फ़ सिर हिला कर देतीं। कभी कभार मन करता तो अपनी मुस्कराहट बिखेरती हुई “हैलो” कह दिया करतीं। मिस गौतम वैसे तो बहुत शांत और शालिन स्वभाव की प्रोफेसर थीं। लेकिन जिस दिन उनका मूंड थोड़ा ख़राब हुआ करता, उस दिन तो ख़ुदा ही मिस गौतम की हल्की भूरी आँखों के गुस्से से किसी को बचा सकता था। मिस गौतम के सामने कॉलेज की बाक़ी महिला प्रोफेसर बेकार ही अपना टशन दिखाए रहतीं। अक्सर कोई न कोई कॉमेंट पास करतीं। और मिस गौतम उन टशन, कॉमेंट वग़ैरह का जवाब सिर्फ़ अपनी इग्नोरेंस से देतीं। मिस गौतम को अक्सर देखकर अमन के ज़हन में ये बात बार-बार घूमती कि प्यार और वो भी अपनी हिन्दी साहित्य की असिस्टेंट प्रोफेसर से। उसकी नज़रों के सामने “मेरा नाम जोकर” फ़िल्म का राजू घुमने लगता। बेचारा मन ही मन सोचता रहता आख़िर इतने वर्षों के बाद भी इस फ़िल्म का समाज पर क्या प्रभाव है। मिस गौतम को हिन्दी साहित्य में छायावाद एवं परवर्ती काव्य में महारत हांसील थी। छायावाद जिसमें कवि अपने अनंत और अज्ञात प्रियतम को आलम्बन बनाकर अत्यंत चित्रमई भाषा में प्रेम की अनेक प्रकार से व्यंजना करता है। मिस गौतम को पहली ही नज़र में देखकर, कोई भी प्रभावित हो सकता था। आख़िर बला की ख़ूबसूरत जो थीं वो। अपनी बादामी आँखों के रंग से कॉलेज को रंगीन बनातीं, अपने हल्के सुनहरे बालों को हवा में लहरातीं, मुसकुराती हुईं जैसे ही मिस गौतम क्लास में दाख़िल होतीं, तो स्टूडेंट्स की नज़रे क़िताबो में कम और मिस गौतम के ट्यूबलाइट से चमकते चेहरे पर कही ज़्यादा होतीं। मिस गौतम ये बात बख़ूबी जानती थीं कि कॉलेज में उनके हज़ारों दीवाने हैं, लेकिन उनका व्यवहार और पेर्सनेलिटी इतनी स्ट्रॉंग थी कि कभी किसी की हिम्मत नहीं हुई कि कोई उनसे पढ़ाई के अलावा कोई और बात कर सके। ऐसे में अमन पहली ही नज़र में मिस गौतम को दिल दे बैठा था। मिस गौतम और अमन की पहली मुलाक़ात भी कम रोमांचक नहीं थी। ग्रेजुएशन के फ़ाइनल में आते-आते अमन पूरे कॉलेज में अपनी बेबाक़ प्रयोगवादी कविताओं के लिए मशहूर था। कैंपस की बहुत सी लड़कियाँ उससे दोस्ती करने को उतावली रहा करती थीं। इंटर कॉलेज कविता प्रतियोगिता में अमन के मंच पर आते ही सीटियाँ बजने लग जाती थीं। बेशक वह कॉलेज के फ़ाइनल ईयर में लड़कियों से बात करने और दोस्ती करने में, थोड़ा अनुभवी हो चुका था, मगर प्यार के मामलों में वह अब भी अनाड़ी था। यही वजह थी कि अमन ने अपना दिल अभी तक किसी लड़की को दिया नहीं था। हिन्दी साहित्य में अपने अल्प ज्ञान के दंभ के चलते, अमन के मन में प्रयोगवादी कविताओं में पीएचडी करने का ख़याली पुलाव पक रहा था। अपने ख़याली पुलाव के पतीले को सिर पर उठाए वह हिन्दी होनर्स की फ़ाइनल ईयर की पहली नई क्लास की ओर चल दिया। नई क्लास में मौजूद नए स्टूडेंट्स को आपस में कॉलेज में होने वाले वार्षिक नाटक में धर्मवीर भारती के नाटक अंधायुग पर चर्चा करते देख उसे लगा कि इस क्लास में उसकी इन पड़ाकू बच्चों से तो बिलकुल भी नहीं पटने वाली। वह मन ही मन सोचने लगा कि हिन्दी साहित्य के इन महापंडित, महा ज्ञाता स्टूडेंट्स के सामने तो वह ज़्यादा दिन टिक नहीं पाएगा। और अपनी मस्ती में मग्न, बिना पीछे देखे वह ग़लती से अचानक पीछे से आती ख़ूबसूरत महिला से टकरा गया। बेशक वो टक्कर मामूली थी। लेकिन उस अचानक हुए हादसे से थोड़ा सहम गया। और उस महिला को देखने लगा। माना अनजान लोगों के सामने तमीज़ से पेश आना चाहिए, मगर उसके दिल ने उनके दिमाग़ की बात सुनने से इनकार कर दिया। और उस महिला को देखकर मन ही मन किशोर कुमार के नग़मे गुनगुनाने लगा। जब वह गुनगुनाते नग़मों के जाल बाहर आया, तो उस महिला की एक टक तीखी पैनी नज़र कहीं और नहीं बल्कि अमन की ओर थीं। और उन तीखी पैनी नज़रों को देखकर अमन को ऐसा लगा जैसे उसके ऊपर ब्रह्मोस मिसाइल छोड़ दी गई थी। अचानक उस महिला को रास्ता देता हुआ, अभिवादन करते हुए वह पहली लाइन के तीसरे डेस्क पर जा बैठा। महिला अब भी गेट के पास ही खड़ी थी। अमन का पागल दिल उस महिला को देखते हुए ज़ोरों से धड़क रहा था। उस महिला के आगे अमन का सारा आत्मविश्वास धराशायी हो गया था। तभी पीछे से क्लास में उपस्तिथ लगभग सभी स्टूडेंट्स ने एक स्वर मे कहा, “नमस्कार मैंम...”। अमन ने अपने अगल-बगल और पीछे मुड़कर पूरी क्लास की ओर देखा और फिर सामने खड़ी मिस गौतम की तरफ़। मिस गौतम केंद्र में रखी कुर्सी की ओर आगे बढ़ीं और मुसकुराती हुईं, लेकिन उन्हीं तीखी पैनी नज़रों से अमन को एक बार देखतीं और फिर सामान्य होकर पूरी क्लास की ओर देखकर कहतीं, “नमस्कार...”। अमन के दिल ने उसके दिमाग़ पर अचानक सेकड़ों सवाल दाग दिए, तो ये हैं मिस ज्योति गौतम? पूरे साल इनका सामना करना पड़ेगा? बाप रे कितना गुस्सा है इनमें? ये काइंड क्यों नहीं है? हाँ गलती तो मेरी ही थी इनसे टकराने पर? मगर इतनी बुरी तरह कोई घूरता है बे? वैसे हैं बला की ख़ूबसूरत। लेकिन ये यहाँ क्या कर रहीं हैं? इन्हें तो किसी ब्यूटी पैजन्ट में होना चाहिए। वहाँ नहीं तो कम से कम बॉलीवुड में? अब इस बोरिंग क्लास में लैक्चर्स नहीं बल्कि रोजाना कवि सम्मेलन होने चाहिए। अज्ञय और धर्मवीर भारती की कविताओं का विमोचन होना चाहिए। पढ़ाई तो अब होने से रही, इन मोहरतमा को सिर्फ़ निहारा ही जा सकता है। “आप कुछ पूछना चाहते हैं...?” मिस गौतम की नज़रों का रुख़ अमन की तरफ़ था। “जी... मैं...?” वह थोड़ा चौंका फिर अचानक सीधे बैठ गया। “बिलकुल आप... क्या नाम है आपका...?” “अमन यादव...” “आप... कुछ पूछना चाहते हैं...?” मिस गौतम ने अमन की उस चोरी को पकड़ लिया था, जो वह मिस गौतम को निहार रहा था। अमन उनसे पूछना तो बहुत कुछ चाहता मगर मिस गौतम के गुस्से से भरी एक टक देखती ख़ूबसूरत आँखों के प्रकोप को भाँपते हुए बहुत ही बेबुनियादी सवाल पूछ बैठा, "जी... जी मैंम कुछ नहीं... मैं तो बस मोहन राकेश के नाटक लहरों के राजहंस के बारे में सोच रहा था... मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ दिल से उस नाटक को इंटर यूनिवर्सिटी थिएटर फ़ैस्टिवल में खेलना चाहता हूँ...” मिस गौतम पहले थोड़ा मुस्कुराईं और फिर अचानक गंभीर हो गईं और उतनी ही गंभीरता से उन्होंने कहा, “लहरों के राजहंस आपको लाइब्रेरी में मिल जायेगा... और उसके बाद भी आपको मोहन राकेश से ज़्यादा दिल लगाना हो तो आप कैंपस की बड़ी लाइब्रेरी में जा सकते हैं...” इतना कहकर मिस गौतम नें टेबल पर रखे अपने नज़र के चश्में को लगाया और बाक़ी बच्चों से अन्य विषयों पर चर्चा करने लगीं। क्लास ख़त्म होने पर अपने बैग को कंधे पर टाँगे मिस गौतम थोड़ा चलीं, लेकिन अचानक रुकीं और अमन से बोलीं, “अमन... तीन बजे क़रीब आप स्टाफ़ रूम में मेरे पास आ जाना... मैं आपको लहरों के राजहंस पर कुछ तैयारी करवा दूँगी...”। अमन मिस गौतम को देखकर सोचने लगा कि आख़िर चीज़ क्या हैं ये मिस गौतम। पहले कटाक्ष भरा जवाब फिर अचानक इतना स्नेह। इसी प्लैनेट की हैं यें? इस चार सो चालीस वॉल्ट के करंट से तो दूर ही रहना अच्छा है। अमन के दिल में मिस गौतम के लिए एक तरफ़ा प्यार का आग़ाज़ हो चुका था। क्लास में अमन के शुरुआती दिनों में थोड़े कम दोस्त बने। फिर धीरे-धीरे दोस्तों की संख्या बड़ती चली गयी। अपनी प्रयोगवादी कविताओं से अमन पूरी क्लास का मन लगाए रखता। आलम ये होता कि खाली वक़्त में कैंटीन में अमन की प्रयोगवादी कविताएँ सुनने के लिए स्टूडेंट्स का मजमा लग जाता। मगर मजमों और हँसी ठिठोली का दौर ज़्यादा दिन नहीं चल पाया। एक दिन अमन मिस गौतम की क्लास में उन्हें नज़रअंदाज़ करते हुए कुछ सहपाठियों के साथ ठिठोली कर रहा था। तो बस फिर क्या था, मिस गौतम गुस्से में तमतमाएँ अपनी नज़रों से अमन पर बरस पड़ीं। उन्होंने अमन को कुछ कहा नहीं, मगर गुस्से से सिर्फ़ देखती रहीं। अमन मिस गौतम की गुस्साई नज़रों के प्रकोप से बचने के लिए नीचे मुँह किए हाथ में उल्टी क़िताब पकड़े ख़मोश हो गया। क्लास में फिर आगे से कभी अमन की ठिठोली नहीं हुई। मिस गौतम आतीं और अपने लैक्चर शांति से पढ़ाकर चली जातीं। हालाँकि, क्लास में चल रहे विषयों पर तर्क-वितर्क भी होता, मगर अमन अक्सर उसमें भाग लेने से बचता। अपनी उस दिन की हरक़त के बाद से, वह मिस गौतम से न तो संवाद स्थापित कर पा रहा था और न नज़रें मिला पा रहा था। वैसे उसके पास क्लास से बाहर रहने का भी विकल्प था, मगर अपने उस विकल्प से वह मिस गौतम को रोज़ाना देख नहीं पाता। क्योंकि वह मिस गौतम से एक तरफ़ा प्यार कर बैठा था। उसने फ़ैसला किया कि वह क्लास में रहकर ही मिस गौतम का दिल जीतेगा। मिस गौतम का दिया कोई असाइनमेंट अमन ने अधुरा नहीं छोड़ा। कोई क्लास नहीं छोड़ी। अमन मासूमियत से मिस गौतम को देखता। बहुत बार जब मिस गौतम उसे पकड़ लेतीं, तो अमन अपनी गर्दन इधर-उधर घूमा लिया करता। कभी-कभी मिस गौतम उसकी इस हरक़त पर मुस्कुरा दिया करतीं। कभी किसी दिन पूरी क्लास के सामने किसी सवाल के गलत जवाब पर इतनी बुरी तरह डाँटती कि बेचारे का पूरा दिन ही ख़राब जाता। अमन मिस गौतम को अपना समूचा संसार मानने लगा था। उसके सभी ग़म और खुशी मिस गौतम पर निर्भर हो गए थे। उसका जीवन, उसकी मुक्ति भी मिस गौतम पर आधृत थीं। क्लासरूम के इन क़हक़हों के बीच नवंबर आ चुका था, कॉलेज छात्र संघ चुनाव का समय। कॉलेज में पिछले कुछ वर्षों से एक ही पार्टी के लोग जीतते आ रहे थे। हर वर्ष छात्रों की मांगों को दबा दिया जाता था। इस बार कुछ छात्रों ने मिलकर नई यूनियन बनाने का निर्णय लिया। नई नीतियाँ बनाई। और उन छात्रों में अमन भी था। बहुत से मुद्दों को लेकर बहुत दवाब भी था। अमन नई यूनियन के छात्रों के साथ देर रात तक कॉलेज की कैंटीन में मीटिंग में व्यस्त रहता। एक सप्ताह बाद होने वाले कॉलेज छात्र संघ के चुनाव की मीटिंग से फ़्री होकर अमन कॉलेज कैंटीन के गेट पर आया तो बाहर थोड़ा अंधेरा और लौटते मानसून के बादल थे। अमन ने दाईं ओर अपनी नज़र घुमई तो मिस गौतम दो और महिला प्रोफेसर्स के साथ घर जाने के लिए कॉलेज से निकलने की तैयारी में थीं। मिस गौतम उस दिन अपनी कार नहीं लाई थीं। अमन को बाहर खड़ा देखकर मिस गौतम वहाँ से गुजरती हुई बोलीं, “तो अब आप... छात्र संघ अध्यक्ष बनने की तैयारी कर रहे हैं...” “नहीं... मेरा मतलब जी मैंम असल में... मैं इनके समर्थन में हूँ...” अमन ने मुसकुराते हुए बहुत संजीदगी से मिस गौतम के प्रश्न का उत्तर दिया। “बधाई हो...” और इससे पहले अमन कोई जवाब दे पाता, मिस गौतम इतना कहकर मुस्कुराती हुई बाक़ी की दो महिला प्रोफेसर्स के साथ चली गईं। दो दिन बाद शाम को दोनों पार्टियों के बीच होने वाली प्रेसीडेंसीयल डिबेट में अमन ने मिस गौतम को आमंत्रित किया था। मिस गौतम ने अमन का आमंत्रण स्वीकार कर लिया था, मगर अपनी शर्तों पर कि वह ज़्यादा समय उस प्रेसीडेंसीयल डिबेट में नहीं बिता पाएँगी। डिबेट में अमन ठीक मिस गौतम के साथ ही बैठा था। डिबेट के दौरान सभी मुद्दों पर ज़ोरों से तर्क-वितर्क हुए, नार्थ-ईस्ट के छात्रों की सुरक्षा के मुद्दें, सरकारी बस पास का किराया कम करवाने का मुद्दा, बाहरी छात्रों को होस्टल मुहैया करवाने का मुद्दा, कॉलेज स्टूडेंट्स फ़ंड जैसे वग़ैरह... वग़ैरह मुद्दें जो वर्षों से एक जैसे चले आ रहे थे। डिबेट ख़त्म होने पर वहाँ मौजूद सभी लोगों के लिए रिफ़्रेशमेंट आ चुका था। अमन हेल्थ कोंशियस था। उसके पिताजी को मधुमेह थी। तो वह भी डर से, बिना शुगर की फ़ीकी चाय-कॉफ़ी लिया करता था। कैंटीन अटेंडेंट को ये बात बख़ूबी मालूम थी और वह अमन से बोला, “बाबू साहब मैं आपके लिए अलग से फ़ीकी चाय बनाकर लाऊँगा... ये सभी मीठी हैं...” तभी मिस गौतम बोलीं, “सुनो मेरे लिए भी... शुगर फ़्री चाय लाना...”। अमन बहुत हैरानी से मिस गौतम को देखने लगा। मिस गौतम के मुँह से शुगर फ़्री शब्द सुनकर तो वह जैसे पागल ही हो गया। मन ही मन मुसकुराने लगा। और सोचने लगा कि कितना कुछ मिलता है हम दोनों में। यहाँ तक कि चाय पीने का अंदाज़ तक। और अपने मन में बोला, “वह रे डेस्टिनी, क्या शुगर फ़्री लव एंगल है।“ कुछ देर बाद दोनों अपनी-अपनी शुगर फ़्री चाय हाथ में लिए डिबेट के वातावरण से उठ कर कैंटीन के बाहर बनी टेबल चेयर पर बैठ गए और साहित्य, नाटक आदि विषयों पर बात करने लगे। मिस गौतम अमन को छायावादी दौर के बारे में कुछ समझातीं, तो अमन खामोशी से उनकी बातों को सुनता और फिर उनके चुप हो जाने पर छायावाद को वेदना या पीड़ावाद बता कर नई बहस शुरू कर दिया करता। मिस गौतम छायावाद पर अमन के तर्क-वितर्क पर काफ़ी इंप्रेस भी होतीं। वो मन ही मन सोच रहा था, शायद ये मेरे प्यार की जीत है। कुछ पल ही सही, लेकिन मिस गौतम का साथ तो मिला। अमन मिस गौतम को अपनी प्रयोगवादी कविताओं और कवियों में रुचि के बारे में बताता। मिस गौतम उसे बहुत ध्यान से सुनतीं। उन पलों में अमन किसी परिपक्व प्रेमी की तरह मिस गौतम को साधे बैठा था। मिस गौतम अपना चाय का कप टेबल पर रखते हुए बोलीं, “तो ग्रेजुएशन के बाद क्या इरादा है...” “मैं आपकी तरह... साहित्य पढ़ाना चाहता हूँ...” “उसके लिए एकाग्रता और कड़ी मेहनत की ज़रूरत है... इस तरह क्लास में मुझे देखते रहने से बात नहीं बनेगी...” इतना कहकर मिस गौतम हँसने लगी। अमन नें शर्माते हुए अपनी निगाहें नीचे कर लीं और उसके हाथ से चाय का कप छुटते-छुटते रह गया। अपनी हँसी को कंट्रोल करते हुए मिस गौतम गंभीरता से बोलीं, “मैं समझ सकती हूँ अमन... इस उम्र का दौर बहुत अनस्टेबल होता है... तुम होनहार छात्रों में से हो... अपने सपनों को सही दिशा दो... फिर देखना तुम्हारी जगह कहाँ है...।” और इतना कहकर अमन की तरफ़ तसल्ली से देखती रहीं। उस बैठक में दो बातें पता चलीं। एक ये कि मिस गौतम अपने और छात्रों के बीच रूढ़िवादी न होकर आज के जमाने की थीं और दूसरी ये कि उन्होंने छात्रों और अपने बीच बहुत चौड़ी व लंबी लक्षमण रेखा भी खींच रखी थी। अमन ने मिस गौतम की बात को गंभीरता से लिया। मिस गौतम यह कहते हुए कि कल क्लास में मिलेंगे, वहाँ से चली गईं थीं। अगले कुछ ही दिनों में चौबीस दिसंबर से कॉलेज शीत अवकाश के लिए बंद होने वाला था। बहुत हिम्मत करके अमन मिस गौतम से हिन्दी परीक्षा के नोट्स लेने के लिए स्टाफ़ रूम में गया। मगर मिस गौतम ने अमन को यह कहकर लौटा दिया कि वे कल से दो महीनो के लिए निजी छुट्टियों पर जा रही हैं। अगर संभव हो तो वह डॉ. आकांक्षा त्रिवेदी से वह नोट्स कलेक्ट कर ले। भला पंद्रह दिन के लिए बंद होने वाला कॉलेज अब अमन के लिए दो महीनो के लिए बंद था। जैसे-तैसे अमन ने मिस गौतम की दो महीनों की निजी छुट्टियों के ख़त्म होने का इतना लंबा इंतज़ार किया। फ़रवरी आ चुका था। और इस महीने कॉलेज का वार्षिक महोत्सव होने जा रहा था। अमन ने मिस गौतम को समर्पित अपने प्रेम की अभिव्यक्ति के लिए ख़ुद एक कविता तैयार की थी। क्योंकि मिस गौतम कॉलेज के वार्षिक महोत्सव वाले दिन ही रिजॉइन करने वाली थीं। वार्षिक महोत्सव शुरू हो चुका था। सभी ने कॉलेज सभागार में अपनी-अपनी सीटें पकड़ लीं थीं। अमन मंच पर था। वह मिस गौतम को समर्पित अपने प्रेम की कविता सुनाने ही वाला था कि वह रुक गया। सभागार की पहली पंक्ति में मिस गौतम शादीशुदा लिवास में बैठी थी। दोनों हाथो में रंगबिरंगी भरी-भरी चूड़ियाँ, माँग में लाल सिंदूर। यह सब देखकर अमन का शरीर ठंडा पड़ गया। दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। उस वक़्त वो अपनी कविता तो भूल बैठा और ख़ुद को संभालते हुए “मुकद्दर का सिकंदर” फ़िल्म के गीत के साथ मंच पर शुरू हो गया, “ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना, ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना।“ जैसे-तैसे अपना गीत ख़त्म कर अमन मंच से नीचे आया। और सिर्फ़ उदास रहा। कार्यक्रम के बाद मिस गौतम ही अमन के पास आईं और बोलीं, “आप तो मल्टीटाइलेंटेड निकले... गाना भी गा लेते हैं...।“ “नमस्कार मैंम... बहुत-बहुत बधाई हो मैंम आपको शादी की... आपने तो इनवाइट तक नहीं किया... न ही कोई सूचना दी... मैंम पार्टी चाहिए” अमन ने बहुत ज़िंदादिली से मुस्कुराहट के साथ मिस गौतम को बधाई देते हुए कहा। उसके ज़ेहन में मिस गौतम को लेकर कोई कुंठा नहीं थी। ये बीस-बाईस का दौर होता ही कुछ ऐसा है। वह जब भी मिस गौतम को देखता था, तो उसे बस सुकून मिलता था और उसका दिन अच्छा जाता। “हाँ... क्यों नहीं... बताइए क्या ट्रीट पसंद करेंगे आप?” मिस गौतम मुसकुराते हुए ख़ुशी से बोलीं। अमन भी मिस गौतम के नूरानी चेहरे की ओर देखता हुआ बोला, “वही अपनी वाली शुगर फ़्री चाय...।”